भगत सिंह: भारत के शहीदे-ए-आजम | Bhagat Singh
भगत सिंह (1907–1931) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे लोकप्रिय, बहादुर और विचारधारा से प्रेरित क्रांतिकारी थे। उन्हें “शहीदे-ए-आजम” के नाम से जाना जाता है। उनका संघर्ष केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी के लिए नहीं था, बल्कि समाज में बदलाव, समानता और न्याय स्थापित करने के लिए भी था। भगत सिंह ने अपने युवावस्था में ही वह काम कर दिखाया जिसे सुनकर आज भी हर भारतीय का दिल गर्व से भर जाता है।
भगत सिंह का जन्म और परिवार
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जन्म: 27 सितंबर 1907
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जन्मस्थान: बंगा गांव, जालंधर (अब पाकिस्तान में)
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पिता: किशन सिंह
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माता: विद्यावती कौर
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परिवार: देशभक्त परिवार; उनके चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी क्रांतिकारी थे।
भगत सिंह बचपन से ही अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादतियों को देखकर देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहते थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) ने उनके मन पर गहरी चोट पहुंचाई।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
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उन्होंने Nationale College Lahore में पढ़ाई की, जहाँ उन्हें लाला लाजपत राय के विचारों से प्रेरणा मिली।
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छात्र जीवन में ही वे देशभक्ति, क्रांति, और समाज सुधार के विचारों से जुड़ गए।
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वे किताबें पढ़ने का बेहद शौक रखते थे और समाजवाद (Socialism) से काफी प्रभावित थे।
क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत
भगत सिंह ने बहुत कम उम्र यानी 14–15 साल की अवस्था से ही क्रांतिकारी संगठनों के साथ कार्य करना शुरू कर दिया।
वे आगे चलकर Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) के प्रमुख सदस्य बने।
लाला लाजपत राय की मृत्यु और बदला
1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी सांडर्स (J.P. Saunders) की लाठीचार्ज से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
इस घटना ने भगत सिंह को झकझोर दिया।
सांडर्स वध (Saunders Killing)
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भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने मिलकर सांडर्स को मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।
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इस घटना से पूरे भारत में क्रांतिकारी आंदोलन तेज हो गया।
असेंबली में बम फेंकने की घटना (1929)
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंका, जिसका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि
👉 अंग्रेज़ सरकार को जगाना और भारतीय जनता तक क्रांति की आवाज़ पहुँचाना था।
उन्होंने नारा लगाया:
“इंकलाब ज़िंदाबाद!”
इसके बाद दोनों ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया।
भगत सिंह का मुकदमा और विचारधारा
जेल में भगत सिंह ने कई किताबें पढ़ीं और क्रांतिकारी विचारों पर लेख लिखे। उनके अनुसार:
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आज़ादी का मतलब केवल अंग्रेज़ों को बाहर निकालना नहीं,
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बल्कि गरीबी, भेदभाव, अशिक्षा, और अन्याय से भी मुक्ति था।
उनका एक प्रसिद्ध कथन है:
“किसी भी मनुष्य को उसके विचारों के लिए मारा नहीं जा सकता।”
फांसी और शहादत
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तारीख: 23 मार्च 1931
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साथी: राजगुरु और सुखदेव
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जगह: लाहौर जेल
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उनकी उम्र उस समय सिर्फ 23 साल थी।
भारत के हर कोने में यह खबर आग की तरह फैली और लोग उन्हें हमेशा के लिए शहीदे-ए-आजम के रूप में याद रखने लगे।
भगत सिंह के प्रमुख विचार (Ideology)
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असली आज़ादी का मतलब सामाजिक बदलाव है।
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युवा पीढ़ी ही देश का भविष्य है।
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धार्मिक कट्टरता की जगह वैज्ञानिक सोच होनी चाहिए।
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शोषण रहित समाज का निर्माण जरूरी है।
महान नारे (Popular Slogans)
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“इंकलाब ज़िंदाबाद”
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“साइमन गो बैक”
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“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।”
भगत सिंह की विरासत (Legacy)
आज भी भारत में भगत सिंह युवा शक्ति, साहस और देशभक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक हैं।
उन पर कई फिल्में, पुस्तकें और दस्तावेज़ बनाए गए हैं।
स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर उनका नाम और फोटो गर्व के साथ लगाया जाता है।
